पृथ्वी पर वायुदाब भिन्न- भिन्न होने के कारण हवाएं उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है जब यह हवाएं सीधे रूप में चलती है तो इनको पवन कहते हैं
पृथ्वी पर वायुदाब भिन्न- भिन्न होने के कारण हवाएं उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है जब यह हवाएं सीधे रूप में चलती है तो इनको पवन कहते हैं। आइये जानते हैंं स्थायी पवनों के बारे में कुछ तथ्य
स्थानीय पवनें (Permanent winds)
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- पृथ्वी के एक बड़े भाग में एक ही दिशा में पूरी साल चलने वाली पवनों को स्थायी पवने कहते हैं। इनको प्रचलित पवनों के नाम से भी जाना जाता है। स्थायी पवनें एक ओर से दूसरी ओर नियमित रूप से चला करती हैं। जैसे- व्यापारिक पवन, पछुवा पवन और ध्रुवीय पवन।
- व्यापारिक पवन- व्यापारिक पवनें 5 से 30 उत्तरी अक्षांश और दक्षिणी अक्षांश के क्षेत्रों या उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंध से भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबंधों के दोनों गोलार्द्धों में पूरे साल लगातार हवा चलती रहती है जिन्हें व्यापारिक पवनें कहते हैं।
- कारिऑलिस बल* के कारण ही व्यापारिक पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है।
- पछुवा पवन- पछुवा पवन उन प्रदेशों की ओर चलती हैं जो उपोष्ण उच्च भार क्षेत्रों के उत्तर में ध्रुवों की ओर स्थित हैं, व्यापारिक पवन और पछुवा पवन एक दूसरे के विपरीत चलती हैं। पछुवा पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलती हैं तथा दक्षिण गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर चलती हैं।
- पछुवा पवनें सबसे ज्यादा 40 से 65 दक्षिणी अंक्षाश के बीच में पाई जाती हैं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इन पवनों को गरजता चालीसा, प्रचण्ड पचासा तथा चीखता साठा के नाम से जाना जाता है और ये सारे नाम नाविकों के द्वारा दिये गये हैं।
- ध्रुवीय पवन- ध्रुवीय पवन उच्च वायुदाब कटिबंध से निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर प्रवाहित होती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर है।
- उपरोक्त लाल रंग में दिये गये शब्दों का अर्थ भी जाने
- उपोष्ण उच्च वायुदाब - उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्धों में क्रमश: कर्क रेखा और मकर रेखा से 35 अक्षांश तक उपोष्ण उच्च वायुदाब होता है।
- उपोष्ण- उपोष्ण का अर्थ होता है कि जहां पर कुछ महीनों तक ताप ज्यादा रहे तथा कुछ माह तक ताप कम रहे।
- कारिऑलिस बल- पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती हैं जिसे कारिऑलिस बल कहते हैं
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